बारह
साल पहले वर्ष 2001 के अगस्त महीने में आई दिल चाहता है ने आमिर खान की
लगान की तरह अनेक नई चीजें आरंभ कीं। इसमें पहली बार जोरदार तरीके से
किरदारों के लुक्स पर काम किया गया। फरहान अख्तर की पत्नी अधुना ने फिल्म
के चरित्रों को उनके स्वभाव के मुताबिक हेयरस्टाइल दी। इसके अलावा फिल्म
के फील पर भी मेहनत की गई थी। फिल्म के पोस्टर, प्रचार और गानों से स्पष्ट
हो गया कि दिल चाहता है एक युवा फिल्म है।
जाने-पहचाने किरदार
दोस्त की प्रेरणा
बहरहाल,
हिमालय पुत्र पूरी होने के बाद फरहान अख्तर ने स्क्रिप्ट शॉप एड एजेंसी
में तीन साल तक काम किया। वहां कॉपी राइटिंग और विजुअलाइजेशन का काम था।
वे तीन सालों तक वहां रहे। उसी दौरान उन्होंने दिल चाहता है की कहानी
लिखी। यह वर्ष 1997 की बात है। स्क्रिप्ट लिखने का भी प्रसंग रोचक है। एड
एजेंसी में थोडा खाली समय मिल जाता था। एक दोस्त के कहने पर फरहान ने अपने
विचारों को कलमबद्ध करना शुरू किया। रोज कुछ न कुछ लिखते रहे। वहां आदि
पोचा से फरहान अख्तर का इंटरेक्शन होता था। आज भी फरहान अख्तर अपने
करियर को संवारने का क्रेडिट आदि पोचा को देते हैं। तब तक फरहान डायरेक्टर
बनने के बारे में सोचने लगे थे। वे उसी दिशा में सीखना और बढना चाहते थे।
आदि पोचा ने ही उन्हें समझाया कि डायरेक्शन में जाने के लिए जरूरी है कि
आपको लिखना आता हो। उस समय तक यह ट्रेंड आ चुका था और सभी डायरेक्टर
अपनी फिल्मों का लेखन भी कर रहे थे। खासकर फिल्म इंडस्ट्री से आए
डायरेक्टर ऐसा कर रहे थे। सूरज बडजात्या, आदित्य चोपडा और करण जौहर की
कामयाबी ने इसे नियम सा बना दिया था। आदि पोचा ने समझाया था कि तुम भले ही
अपने स्क्रिप्ट नहीं लिखो, लेकिन विषय और किरदार के बारे में सोचोगे तो
राइटिंग की जानकारी मदद करेगी। लिखना शुरू कर दो। अपने किरदारों के बारे
में लिखो। किसी इंसान ने प्रभावित किया हो तो उसके बारे में लिखो। एक घंटे
रोज कंप्यूटर पर बैठो और लिखो। किसी दिन कुछ नहीं सूझ रहा है तो भी
कंप्यूटर के सामने बैठे रहो।
दोस्तों की कहानी
वहीं
स्क्रिप्ट की शुरुआत हुई। दोस्तों के साथ घटी घटनाएं लिखीं। गोवा की
यात्रा के बारे में लिखा। अपने कुछ दोस्तों के दिल टूटने की कहानी लिखी।
उन्हीं दिनों लंबे समय के बाद अपने दोस्त काशिम जगमाया से मुलाकात हुई।
उन्होंने एक कहानी सुनाई। उनकी वह कहानी ही थोडे बदले रूप में आकाश का
ट्रैक बनी। एक लडका अपने दोस्त की शादी में जाता है। प्यार और समर्पण में
उसका विश्वास नहीं है। वहां वह किसी से मिलता है। उससे प्रेम होता है।
उन्होंने आकाश की कहानी मुझे दे दी। आकाश की कहानी लिखते समय मुझे हिंदी
फिल्मों के उस ट्रेंड की याद आई, जिसमें दोस्त हुआ करते थे। उन फिल्मों
में वे शुरू में आते थे और फिर गायब हो जाते थे। फिर वे फिल्म के अंत में
बधाई देने आते थे। मेरी फिल्म में ऐसे दो दोस्त आ गए। मैंने केवल यह फर्क
किया कि उन्हें पूरी फिल्म में रखा। हीरो की तरह वे भी प्रमुख बने रहे।
मैंने अपने दोस्तों को ही कहानी में उतारा। हमारी उम्र के दोस्तों में
कमिटमेंट का फोबिया बहुत था। हम समर्पण भाव से डरते थे। दोस्तों के बीच
यह भी हुआ कि कभी गाढी दोस्ती रही तो कभी वह टूट गई। बाद में दिल चाहता है
दोस्तों की कहानी बन गई। लव स्टोरी पीछे चली गई।
पिता की मदद
फरहान
अख्तर ने पहली फिल्म में अपने पिता जावेद अख्तर की भरपूर मदद ली।
अभिनेता मां-पिता तो अपनी मौजूदगी से बेटे-बेटियों की फिल्म में मदद करते
हैं। लेखक पिता जावेद अख्तर ने लेखन से मदद की। उन्होंने इस फिल्म की थीम
के अनुसार गीत लिखे। फिल्म के शीर्षक गीत से लेकर प्रेम की नोंक-झोंक तक
के गीत में जावेद अख्तर का योगदान दिखता है। शीर्षक गीत में आज की दोस्ती
को अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति मिली है। इस संबंध में फरहान कहते हैं, मुझे
लगता है कि फिल्म में गानों का सही इस्तेमाल हो तो वे फिल्म के कथ्य को
मजबूत करते हैं। वे कहानी की ख्ाली जगहों को भरने के साथ दर्शकों की रुचि
भी बढाते हैं। गीतों में रूहानी एहसास होता है। कई बातें दृश्य और
संवादों में नहीं कही जा सकतीं। दिल चाहता है में ऐसा हो गया। किरदार के
मिजाज, मूड और विरोधाभास को गीतों ने अच्छी तरह से बयान किया। संवादों में
कविता नहीं डाली जा सकती। जावेद साहब ने फिल्म की स्पिरिट को गीतों में
उतार दिया। वे फिल्मों के मिजाज के अनुसार ही गीत लिखते हैं।
लुक्स जो भा गए सबको
दिल चाहता
है के लुक्स की काफी चर्चा होती है। इस फिल्म ने हमेशा के लिए यह ट्रेंड
स्थापित कर दिया कि हर फिल्म के चरित्र अलग होते हैं। इसलिए ऐक्टर को भी
अलग दिखना चाहिए। उसके पहले सभी फिल्मों में ऐक्टर लगभग एक जैसे ही दिखते
थे। उसकी एक वजह यह भी थी कि आमिर खान को अपेक्षाकृत युवा भूमिका निभानी
थी। फरहान अख्तर उन दिनों को याद कर बताते हैं, मैंने सोच लिया था कि मेरे
किरदार कैसे लगेंगे? उन्हें मेरे परिचितों जैसा दिखना और लगना जरूरी था।
यह श्रेय मैं सुजैन विरवानजी को दूंगा। वह प्रोडक्शन डिजाइनर थीं।
कॉस्ट्यूम डिजाइनर अर्जुन भसीन थे। उन दोनों ने पर्दे पर यह रूप दिया।
अधुना और अवान ने हेयर कट दिए थे। उनके यहां आज भी लोग आकाश का हेयर कट
मांगते हैं। आमिर ने होठों के नीचे गोटी रखी थी। वे खुद उसे नुक्ता कहा
करते थे। इन तकनीशियनों के अलावा मैं ऐक्टरों को भी क्रेडिट दूंगा। उन
दिनों सारे स्टार्स अपनी इमेज में रहते थे। वे रत्ती भर भी बदलाव नहीं
चाहते थे। लेकिन इस फिल्म के सभी ऐक्टर्स ने साहस दिखाया।
आमिर का योगदान
फरहान
अख्तर ने 1998 में आमिर खान को दिल चाहता है की कहानी सुना दी थी, लेकिन
तभी उनकी लगान शुरू हो गई। आमिर ने इंतजार करने के लिए कहा तो फरहान सहज
ही राजी हो गए। फरहान मानते हैं कि आमिर के आने से ही फिल्म बडी और
विश्वसनीय हो गई थी। वे याद करते हैं, आमिर के हां कहने से इंडस्ट्री के
बाकी लोगों का विश्वास मेरे प्रति बढा। मेरी फिल्म बडी और सीरियस प्रोजेक्ट
की तरह बन गई। सभी जानते हैं कि आमिर खान बहुत चूजी हैं। उनके साथ काम
करने का जबर्दस्त अनुभव रहा। उनके बारे में अफवाह है कि वे फिल्म में
हस्तक्षेप करते हैं। मुझे लगता है कि उनकी गलत छवि बन गई है। सच्चाई यह है
कि उनके सवालों को हस्तक्षेप मान लिया जाता था। एक ऐक्टर को पूरा अधिकार
है कि वह अपने चरित्र और फिल्म के बारे में पूछे। आमिर अपने समय से हमेशा
आगे रहे हैं। वह फिल्म को शक्ल देने में पूरी मदद करते हैं।
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