Monday, 30 September 2013

प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की नई परंपरा शुरू हुई है

भारतीय राजनीति में अर्थशास्त्री से अलग डॉ. मनमोहन सिंह एक समय सोनिया गांधी के लिए तुरुप का पत्ता बनकर सामने आए थे. एक दशक पहले जब कांग्रेस के पाले में लंबे समय बाद जीत की जयकार गूंजी तो सोनिया का विदेशी मूल का होना उनकी सबसे बड़ी परेशानी बन गई.
तब मनमोहन सिंह ही थे जिसे सोनिया ही कांग्रेस का एक निर्विरोध प्रधानमंत्री चेहरा बनाकर सामने लाईं. हालांकि मनमोहन सिंह का वजूद भारतीय राजनीति में इससे पहले भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में रहा लेकिन सीधा-सादा यह व्यक्तित्व बहुत कम लोगों की याद में रह सका था.

manmohan singh as pm in hindiविशुद्ध रूप से अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री बने उस समय के घटनाक्रमों में मीडिया ने इसे ऐतिहासिक घटना के रूप में दिखाया लेकिन मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री का प्रधानमंत्री बनने के कारण नहीं बल्कि सोनिया गांधी के त्याग के कारण. 1991 में देश की पहली सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था संकट के वक्त अपनी काबीलियत के देश की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वित्त मंत्री बनाया जाने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री पद के लिए एक बहुत अच्छा विकल्प था ऐसी कोई चर्चा नहीं थी, बल्कि चर्चा में था कि गांधी परिवार की पुत्रवधू, देश की बहू ने देशहित में सत्ता लोभ का त्याग कर दिया. इस त्याग के पीछे मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्री व्यक्तित्व कहीं दब कर रह गया पर राजनीति की परंपरा है कि यहां हर कोई किसी न किसी से दबा हुआ होता है. तब किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि इस दबाव का कोई नकारात्मक प्रभाव भी देश की राजनीति और विकास पर पड़ सकता है. सभी बहू के त्याग और सूझबूझपूर्ण चुनाव से अभीभूत थे. लेकिन इसके दूरगामी परिणाम जब सामने आने लगे तो राजनीतिक महकमे में हड़कंप मच गया.

No comments:

Post a Comment